आस

भीतर भरी रहती है शब्दों की ज्वालमुखी,
फिर भी रहती हरपल जबान सूखी सूखी ।

ख्वाहिशों की आड़ में मोड़ लेती ज़िन्दगी,
बाहर दिख रहे ख़ुश, अंदर सब दुःखी दुःखी ।

पूरे शहर में खुशियों की बारिश बरसी है,
सिर्फ हमारी जमीन रह गई है रूखी रूखी ।

जो मिला, जितना मिला, उतना ही काफी है,
सिर्फ मोहब्बत की आस रह गई भूखी भूखी ।

© Mitesh Rajgor

6 Replies to “आस”

  1. अच्छा हुआ महोब्बत रह गई भूखी भूखी
    वरना सारी जिंदगी लगती सूखी सूखी

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