भीतर भरी रहती है शब्दों की ज्वालमुखी,
फिर भी रहती हरपल जबान सूखी सूखी ।
ख्वाहिशों की आड़ में मोड़ लेती ज़िन्दगी,
बाहर दिख रहे ख़ुश, अंदर सब दुःखी दुःखी ।
पूरे शहर में खुशियों की बारिश बरसी है,
सिर्फ हमारी जमीन रह गई है रूखी रूखी ।
जो मिला, जितना मिला, उतना ही काफी है,
सिर्फ मोहब्बत की आस रह गई भूखी भूखी ।
© Mitesh Rajgor
Wah wah… wah wah…. wah wah… 👏👏
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Thank you : )
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अच्छा हुआ महोब्बत रह गई भूखी भूखी
वरना सारी जिंदगी लगती सूखी सूखी
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ji huzoor 😀😀💜💜
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Superbb Brother
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Thank you Raghubhai 😊
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