हर लम्हे के साथ जीने की चाहत कम हो रही,
आपकी आँखे हमें जीने के लीये मजबूर कर रही है।
जबकि हमें तो हर घडी कही दूर जाने की चाहत है,
तबभी जाके फिर वापस आने के डर से यही हूँ।
जब में मान लेता हु की कोई किसी का नही,
हर वक्त तू सामने आकर मेरे मन को सताती है।
दिल में किसी को रहने के लीये जगह नही,
इसके बावजूद तूने जिद्द सी रखी है उसे पाने की।
ना कभी खोया रेहता में किसी के खयालो मे,
और अब मेरे हर खयाल पे तूने हुकूमत जमा रखी है।
जंजीर ने तो हमारे हाथ को भी नही बक्षा,
तुम तो अब भी फूलो से हाथ सजाकर बेठी हो।
बस ऐसे ही तड़पाती रहेगी हमें पुरे सफ़र में,
या हमें भी थोड़ी आशिक़ी की ज़िन्दगी मिलेगी।
©Mitesh Rajgor